हर साल की तरह इस साल भी आम बजट संसद के पलट के माध्यम से जनता के सामने पेश कर दिया गया है। लगता है आम जनता को अच्छे दिनों का अभी और इंतजार करना पड़ेगा। इस इंतजार की घड़ी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में 2022 से बढ़ा कर 2047 कर दिया है जो कि आजादी के 100 साल पूरे होने पर अमृतकाल के नए जुमले के तौर पेश किया गया है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी, सबको अपना घर, स्मार्ट सिटी जैसे कई वादे अभी अधूरे ही है लेकिन वित्तमंत्री नेबजट में इन वादों के बारे में कोई खास बात नहीं रखी है।
कोरोना महामारी के बाद से आम जनता लगातार मंहगाई और बेरोजगारी से जूझ रही है। वेतनभोगी वर्ग और मध्यम वर्ग महामारी के समय में राहत की उम्मीद कर रहा था लेकिन वित्त मंत्री ने उन्हें प्रत्यक्ष कर उपायों को लेकर फिर से निराश किया है। इनकम टैक्स के स्लैब में इस साल भी कोई बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि, वित्त मंत्री ने करदाताओं को कुछ राहत देते हुए घोषणा की कि अब दो साल के भीतर अपडेट आयकर रिटर्न दाखिल किया जा सकता है।
बजट में ई-विद्या चैनल बढ़ाए जाने और डिजिटल यूनिवर्सिटी स्थापित किए जाने की बात की गई है लेकिन भारत में बढ़ते डिजिटल डिवाइड जैसे विषयों को नजरंदाज किया गया है। 60 लाख नए रोजगारों का सृजन किए जाने की बात की गई है लेकिन ये रोजगार आएगा कहाँ से, इसका रोडमैप प्रस्तुत नहीं किया गया है। क्रिप्टोकरेंसी से मुनाफे पर 30 फीसदी की दर से टैक्स लगेगा, लेकिन यह तय नहीं कि यह कानूनी तौर पर सही है या गैर कानूनी।
चिंता की बात यह है कि सरकार इस बजट को सबका साथ, सबका विकास के मूलमंत्र पर आधारित मान रही है लेकिन तमाम दावों और सफाइयों के बावजूद वो अर्थशास्त्री सही साबित होते दिख रहे हैं जो कह रहे थे कि कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था में जो सुधार आ रहा है उसमें सबकी बराबर हिस्सेदारी नहीं है। K-शेप रिकवरी के कारण जहां कुछ तबके तेज़ी से ऊपर जा रहे हैं वहीं कुछ आज भी नीचे ही गिरते दिख रहे हैं। लेकिन क्या यह बजट इस गैर बराबरी को दूर कर पाएगा?
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