वित्त वर्ष 2022-23 का आम बजट 1 फरवरी 2022 को पेश होगा। इस बजट से लोगों को काफी उम्मीदें है। इस साल पेश होने वाला बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यकाल का चौथा बजट होगा। देखना यह होगा कि इस बार के बजट में वित्त मंत्री रोजकोषीय घाटे को कम करने पर फोकस करती हैं या कोविड की चपेट से पस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकारी खर्च को बढ़ाती हैं।
जब कोई सरकार अपने बजट में आय से अधिक खर्च दिखाती है तो इसे घाटे का बजट कहते हैं। आमतौर पर भारत सरकार घाटे का बजट ही दिखाती हैं। इससे जनता को यह संदेश मिलता है कि सरकार आय की अपेक्षा कल्याणकारी योजनाओं में खर्च ज्यादा कर रही है। इसके साथ ही इससे करदाताओं को भी यह लगता है कि सरकार उनसे कमाई नहीं कर रही बल्कि लोक कल्याण में खर्च कर रही है।
क्या होता है राजकोषीय घाटा
सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है। राजकोषीय घाटे की भरपाई के मुख्य साधन विनिवेश , घरेलू और विदेशी कर्ज और केन्द्रीय बैंक (रिजर्व बैंक) के माध्यम से इसके लिए छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के जरिए पूंजी बाजार से फंड जुटाया जाता है।
राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। वित्त मंत्रालय प्रत्येक वर्ष बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय करता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का 6.8 फीसदी का लक्ष्य तय किया था। अब बजट पूर्व पेश होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण में पता चलेगा कि यह कहाँ तक पहुंचा है। राजकोषीय घाटा अधिक होने से महंगाई बढ़ने का खतरा होता है।
साल 2020 में बजट पेश होने के बाद कोरोना की महामारी ने देश में पांव पसारा था। महामारी से निपटने की सरकार की कोशिशों के चलते कई बजट प्रस्तावों पर फोकस कम हो गया था। फिर 2021 के बजट में वित्तमंत्री ने आर्थिक संवृद्धि तेज करने के लिए पूंजीगत खर्च बढ़ाने पर जोर दिया था। इस बार भी हालात बहुत ज्यादा अलग नहीं हैं। वित्त मंत्री के लिए तेज आर्थिक संवृद्धि अब भी चुनौती है।
एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की मुख्य अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा ने कहा, "आने वाले बजट में ग्रोथ बढ़ाने के उपायों और अर्थव्यवस्था की मजबूती के कदमों के बीच संतुलन दिखाई देगा।" कोरोना से निपटने के लिए ज्यादा खर्च और वित्तीय सेहत सुधारने पर फोकस के चलते वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़कर जीडीपी के 9.2 फीसदी पर पहुंच गया था। इसके चलते सरकार ने अगले साल राजकोषीय घाटे को कम कर 6.8 फीसदी पर लाने का लक्ष्य तय किया था।
राजकोषीय घाटा ही देश की आर्थिक स्थिति की सही तस्वीर दिखाता है। इस पर शेयर बाजार के निवेशकों से लेकर रेटिंग एजेंसियो तक की पैनी नजर रहती है। जानकारों का मानना है कि भारत अगले वित्तीय वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.3 फीसदी से 6.5 फीसदी रख सकता है। भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का मामले बढ़ रहे हैं। नए वेरिएंट ओमीक्रोन की वजह से उपभोक्ता और व्यावसायिक खर्च पर असर पड़ेगा।
कुछ जानकारों का मानना है कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने की तुलना में सार्वजनिक व्यय अधिक महत्वपूर्ण है। अधिक खर्च से चीजों की मांग बढ़ती है। इससे देश में कारोबार और रोजगार को बढ़ावा मिलता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अच्छा होता है। कारोबार बढ़ना तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ती दिख रही हो।
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